Wednesday, 22 April 2015

Dear bhaiya


Dear bhaiya

mom is hiring a pundit there in faridabad for 3 months. this is senseless when we have so many here. so papa has strictly told mom that we will send from here. yes u can send bhagwati ji to faridabad if you dont wnat to send yogesh ji. But janmashtmi is coming and bhagwati ji rraly celebrates very well. he does the shringar very well.

please understand. there is no point incurring extra cost in faridabad. strecthing these small matters is creating stress for papa also. alot of time and energy is going in this. this is just my observation. please dont feel i'm being rude again.

 प्रिय भैया,

 मम्मी  फरीदाबाद में 3 महीने के लिए एक पंडितजी  हायर कर रही हैं. जब हमारे यहाँ इतने सारे पंडित हैं वहां से किसी को लेने का क्या प्रयोजन है ? पापा ने मम्मी को को दृढ़ता से कहा है कि  वो यहाँ से भेजेंगे . अगर आप योगेशजी को नहीं भेजना चाहते हैं तो  आप भगवतीजी को फरीदाबाद भेज सकते हैं ...जन्माष्टमी नजदीक आ रही है और भगवतीजी कभी कभार ही अच्छे से जन्माष्टमी मना पाते हैं...वो बस श्रृंगार अच्छा करते हैं ...
प्लीज समझो, फरीदाबाद में और अधिक खर्च करने का कोई मतलब ही नहीं है..इतनी छोटी छोटी बातों के बढ़ने से पापा का तनाव बढ़ने लगता है...इसमें बहुत सारा समय और पैसा बरबाद होता है ...यह सब मैं देख रही हूँ....यह न सोचना कि मैं फिर से बुरे तरीके से पेश आ रही हूँ...

Monday, 20 April 2015

Today on the 13 th april 2015

Today was 13th of April,2015 after the Sufi singers went I had spend some time socializing with your art of living gang  and then I was there in your room ,  but today I almost misused your room to finish some work ( to meet some office staff who were waiting )  because I wanted to sit there for longer time and be with you.

Though I was doing some work, dictating messages I also met few people ( in your room ) and also I drank coffee and had some namkeen but still my thoughts were all on you.



You are aware of it, isn't it?

When I came out Mummy was sitting there with Santosh, later on Ravi again from your Art of Living gang was there. They both left soon.


I really like this Ravi today, for the first time. He took great photos Richa, he has strong, steady hands that’s why he can handle that heavy camera with a heavy lens.

Mummy started crying, thinking about you, she asked Sunni sister did Richa cry and how much she cry. Mummy said “yahi thi us din jab maine Richa se baat ki” Then she asked Sunni nurse Did Richa Cry, Sunni Nurse said yes, then Mummy asked does she ( you )  cry a lots, Sunni Nurse said yes, then Mummy felt bad and Mummy really cried.



What to do Richa, what to do.


I really want to know what was your ‘mano stithi’ at that time when mummy spoke to you and said all that (Tum Sharnagati ho jao)

You must have felt  bad, isn't it? How bad did you feel only you know? By hind sight I think of it as  terrible. I feel as if I am being abandoned  by my mother which is such a terrible feeling.

I was telling  mummy I wish if she ( you )  had to go she  ( you ) should have  gone at home not in the icu of a hospital ,  at least you ( mummy  )  and me would have been around her ( you , richa ) . I wish Richa if at all you had to go, you should have left from our home from your room,  me and Mummy and Papa all of us should have  been  with you

Richa  what was the state of your  mind when mummy told you to leave as you were suffering so much ,  and what happened after that, How much did you  suffer. What happened inside you, when did you  have exactly leave, please let me know !

Ashish Bagrodia


आज की तारीख़ 13 अप्रैल, 2015, सूफी गायकों के जाने के बाद कुछ समय आर्ट ऑफ़ लिविंग के गैंग के साथ गुजारने के बाद मैं तुम्हारे कमरे में पहुंचा. लेकिन मैंने अपना काम निपटाने के लिए (प्रतीक्षा करते हुए ऑफिस के स्टाफ से मिलने के लिए) आज फिर तुम्हारे कमरे का दुरुपयोग किया...ऐसा इसलिए किया ताकि मैं अधिक देर तक तुम्हारे कमरे में रह सकूं...   
वैसे तो में कुछ काम कर रहा था जैसे कि मेसेज डिक्टेट कर रहा था...मैंने काफी भी पी....कुछ नमकीन भी खाया...लेकिन मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था... क्या तुम्हारा ध्यान इस पर  गया ? जब मैं बाहर आया तो मम्मी संतोष के साथ बैठी थी...बाद में तुम्हारे आर्ट ऑफ़ लिविंग के गैंग में से रवि भी वहां दिखाई दिया.....दोनों वहां से जल्दी ही निकल गए..मुझे तुम्हारे आर्ट ऑफ़ लिविंग के गैंग में से पहली बार रवि बहुत पसंद आया. उसने बहुत ही कमाल की फोटोज खींची...अपने मजबूत और स्थिर हाथों के कारण वो उस भारी भरकम लैंस वाले इस भारी कैमरे को संभाल पा रहा था....
मम्मी ने तुम्हारे बारे में सोचते हुए रोना शुरू कर दिया...उन्होंने सिस्टर सनी से पूछा कि ‘ऋचा कितना रोई है’   
मम्मी ने कहा “ यहीं थी उस दिन जब मैंने ऋचा से बात की” तब उन्होंने नर्स सनी से पूछा “क्या ऋचा रोई थी?” सनी नर्स ने जबाव दिया-“हाँ”...तब मम्मी ने पूछा –“क्या वो बहुत ज्यादा रोई थी ?” सनी नर्स ने जबाव दिया-“हाँ”...यह सुनकर मम्मी को बहुत बुरा लगा और वो वास्तव में रोई.  
ऋचा क्या किया जाए...क्या करें ???
मैं वास्तव में तुम्हारी उस समय की मनोस्थिति जानना चाहता हूँ जब मम्मी ने तुमसे बात करते हुए सीधे सीधे कहा -“तुम शरणागति हो जाओ” तुम्हे वास्तव में बहुत बुरा लगा होगा...अघात लगा होगा...लगा था न ? अपने अंतर्मन में झाँकता तो प्रतीत होता है कि बहुत ही आधातपूर्ण अनुभव रहा होगा...ऐसा लगा होगा मानों सब से अलग थलग कर दिया हो...कितना भयानक अनुभव रहा होगा...पर कैसा लगा होगा यह तो वास्तव में तुम्हें ही पता होगा...मैं मम्मी से कह रहा था की अगर उसे जाना ही है तो अस्पताल के आई सी यू से क्यों...घर से क्यों नहीं...कम से कम हम हम दोनों तो आखिरी समय में उसके साथ रहें...रिचा अगर तुम्हें जाना ही था तो अपने घर से जाती..अपने कमरे से जाती...मैं, मम्मी और पापा तो तुम्हारे पास होते... ऋचा, आखिर तुम्हारे मन की स्थिति कैसी होगी जब मम्मी ने तुम्हे पीड़ा से आजाद होने के लिए जाने के लिए कहा होगा...तुम पर क्या गुजरी होगी जब तुमने ठीक हमें छोड़ा होगा...प्लीज मुझे बताओ..
आशीष बागरोडिया...

Wednesday, 15 April 2015

A letter written to ailing Richa Didi by Ashish Bagrodia on 9th April

Dear Richa,
Whenever I wish you to visit your room late night I am afraid to visit that room because I feel I will see the suffering which you endured all alone sleeping at night or lying the entire night as you told mummy that you will be awake entire night, as you had so much pain, so much suffering. Even when you had incessant coughing, I wonder what you were doing sitting alone in the room throughout the night with the lights shut. I imagine you sitting on the bed, suffering alone and being alone in your own world, in your own shell and watching the lights outside your room in front of the bed of the Powai lake like a Marine Drive and that Hotel Beatles, etc and the nearest next door building on the other side.
I wonder what was going inside your mind Richa. I am anytime just want to sleep there in your room or at least sit against the back rest. I want to shift on the bed beyond that bed throughout the night and experienced what you must have gone through, maybe the bed will tell me stories about your sufferings?

डियर रिचा,
जब भी कभी देर रात को मेरे मन में तुम्हारे कमरे में जाने का खयाल आता था तो मैं तुम्हारे कमरे में जाने की हिम्मत यह सोचकर नहीं जुटा पाता था कि मुझे तुम्हे असहनीय पीड़ा सहते देखना पड़ेगा. मुझे मम्मी ने बताया था कि तुम दर्द के कारण रात भर सो नहीं पाती हो. जब तुम्हे लगातार खांसी होती थी, तो मैं सोचता रहता था कि तुम पूरी रात लाइट बंद करके अकेले कैसे बैठी रहती हो...अकेले बैठे बैठे क्या करती हो?..मेरे मन में बार बार यह दृश्य घूमता रहता है कि तुम पूरी रात अकेले बिस्तर पर बैठी हो, अपनी दुनिया में एकदम अकेले... बैड पर बैठे हुए पीड़ा भोगते हुए अपने कमरे से बाहर की रोशनी निहारते हुए ...तो कभी होटल बीटल की और ताकते हुए तो कभी मरीन ड्राइव की तरह पवई लेक या दूसरी तरफ निकटतम किसी बिल्डिंग को को देखते हुए...पता नहीं तुम्हारे मन क्या गुजर रही है...मैं कभी भी तुम्हारे कमरे में तुम्हारे सोना चाहता हूँ या कम से कम पूरी रात तुम्हारे कमरे में रुक कर तुम्हारी पीड़ा को समझना चाहता हूँ...हो सकता है की तुम्हारा बिस्तर ही तुम्हारी पीड़ा का बयान कर दे.....आशीष बागरोडिया



4 months have passed I miss you Richa

Dear richa

It's now four months since 
you left us
I miss you so much
Do you miss me too ?

I am unable to live without you
Please meet me , talk to me

I failed as a brother
I did not do anything for you

In 2008 when I was in esm I was happy that the company is turning around and was wanting to save money to take you to USA

It never happened

I have failed

Please meet me soon

Your helpless brother

Ashish

Sunday, 12 April 2015

What I felt on 13th Nov.2014 at Bombay hospital, 12th Floor ICU, New wing

Ashish Bagrodia
Richa gone
Lying there helpless and cold
Finally the battle of ten years ended
Though gracefully
Like a true warrior
But she succumbed
Her mouth open slightly
Her eyes slightly open
I can never forget that sight
Never
Her swollen feet
Tender and graceful in spite of the swelling
Like a small doll she lay lifeless
Her hair looked dishevelled and tired as if after a long days hard work , after a long long , commute finally returning home
Her forehead looked tired yet at peace





चली गई ऋचा चिर निद्रा में
शय्या पर लेटी है बेबस निश्चल
आखिर अंत हो ही गया दस साल के लंबे संघर्ष का
एक गौरवशाली खूबसूरत अंत
एक सच्चे योद्धा के समान
आखिर धरासायी हो गई
अल्प खुला मुंह 
अधखुली आँखें
मेरी आँखों से ओझल नहीं होगा कभी ये दृश्य
कभी नहीं
उसके सूजे हुए पांव
सूजन के बावजूद भी कोमल और आकर्षक
एक नन्ही सी गुडिया सी लेटी पड़ी वो अचल
उसके अस्त व्यस्त केश ...मानों कई दिनों के कठिन परिश्रम के बाद थक गई हो
अभी दैनिक काम से लौटी हो....
क्लांत परंतु शांत है उसका मस्तक

Saturday, 11 April 2015

Richa was always concerned about others


Richa was always concerned about others. She was never absent from the surroundings and kept attention on meticulous detail of everything.  She was very good observant of every situation. This handwritten note (in the handwriting of Ramaji) was dictated by severely ailing Richa Didi on 13thSep, 2014, just two months before her demise. She was watchful that Dharmendra (a staff of mine) had been attending her for several nights without a rest day. She was worried for his continuous seven night shifts. Having been cautious of my nature and probable infuriated reaction of mine over raising finger on my insensitive attitude towards my staff, she expressed very cautiously –“there is one suggestion’ ....Here, she is simply suggesting neither directing nor commanding.

Thursday, 9 April 2015

12 नवंबर,2015 की रात को मेरी अंतिम मुलाक़ात ऋचा दीदी से



आशीष बागरोडिया
12 नवंबर की रात की घटना मेरे दिमाग में बार बार कौंधती है. मैं उस रात ऋचा से मिलने अस्पताल गया था. उस समय वह आई.सी.यू. में थी. आई.सी.यू. में घुसते ही मैंने पाया कि ऋचा आँखें बंद किए लेटी थी और उसके होंठ सूखे थे. होंठ इतने ज्यादा सूखे लग रहे थे कि मेरी नजर होंठों पर बार बार अटक रही थी. सहसा मेरे अंतर्मन में एक आवाज आई कि ऋचा बचेगी नहीं. फिर मैंने बहुत प्यार से उससे बात की. जब भी मैं ‘ऋचा’ कहकर पुकारता था वो तुरंत आँख खोल लेती थी फिर बंद कर लेती थी. ऐसा सतत होता रहा. मेरे मुंह से अपना नाम सुनते ही वो धीरे से आँख खोलती थी. मैंने गुरुजी का ज़िक्र करते हुए बताया कि गुरुजी ने ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करने को कहा है तो फिर उसने आँख खोली और बंद कर ली. मैं ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करने लगा. उसने भी कुछ मिनट जाप किया. कुछ देर पश्चात मैं वहां से निकल गया. जाते हुए मैंने उसे आश्वस्त किया कि सब ठीक हो जएगा. मैंने यह भी विश्वास दिलाया कि अब मैं हर रोज़ यहाँ आऊँगा. मैंने उससे कुछ सकारात्मक(पोज़िटिव) बातें करके उसका मनोबल बढाने का प्रयास भी किया. पता नहीं क्यों हर बार जब भी मेरे मुंह से उसका नाम निकलता था तो वो अपनी आँखें खोल लेती थी ! जब मैंने पूछा कि क्या वह मुझे सुन रही है तो उसने सिर हिलाकर हामी भरी. मैंने उसकी फोटो भी ली. घर पहुंचकर भी मेरे मन में उसके सूखे होंठो का ख्याल आता रहा. मैंने कई डॉक्टरों से संपर्क किया और उसकी गंभीर हालत पर चिंता जताई. उसके सूखे होंठो वाली फोटो भी डॉक्टरों को भेजी ताकि उन पर कोई नैतिक दबाव पड़े. उस दिन जब मैं लेटा हुआ था तो सहसा मेरे कानों में ऋचा की धुंधली सी आवाज सुनाई पड़ी. मानों वो कह रही हो- “भैया मैं जा रही हूँ.” मुझे एक बार तो यही लगा कि शायद यह सब मेरे मन का वहम है. मेरे ही मन की उपज है. लेकिन सुबह जब उसके गुजर जाने का संदेश मिला तो बिलकुल भी यकीन नहीं हुआ. कैसे सब कुछ इतना बदल सकता है? रात को मुझसे बातचीत हुई. मेरी बातें सुनी. मेरी बातों पर प्रतिक्रिया भी की. रात को पूरी तरह सचेत थी. आखिर एक रात में इतना सब कुछ कैसे परिवर्तित हो सकता है? नर्स मेरी भी कुछ ठीक से नहीं बता पा रही है. ये स्थिति कब पलटी ? मेरी मम्मी का कहना है कि हमने सुबह सात बजे भी उससे बातें की हैं. मम्मी ने दिल पर पत्थर रखकर उसे यहाँ तक कहा कि अगर तुम बहुत दुःख झेल रही हो...तुम्हे बहुत कष्ट सहना पड़ रहा है तो तुम हमारी चिंता मत करो..तुम इन सब दुखों से स्वयं को मुक्त कर लो...शरणागत हो जाओ. मम्मी की बातों से उसकी आँखों से आंसू निकल आए और और उसे शायद दुःख हुआ...शायद गला भी अवरुद्ध हो गया होगा. मम्मी को लग रहा था कि ऋचा शायद इस लिए शांति से शरीर नहीं त्याग पा रही क्योंकि उसे हम सब की चिंता है..अपने घर के प्रति गहरे मोह के कारण ऋचा इस जीवन से मुक्त नहीं हो पा रही थी और असहनीय शारीरिक पीड़ा भोग रही थी. वह घर की समस्याओं से काफी गहराई से जुड़ी थी. उसे पिताजी, भाई और अन्य की काफी चिंता रहा करती थी. हम सब जिस आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे थे उससे परेशान थी और हम सबको इन चिंताओं से मुक्त करना चाहती थी.  ढेरों सवाल मेरे ज़हन में घूमने लगे. बड़ा कठिन होता है मन को समझाना कि हमारे सबसे करीब रहने वाला इतना दूर हो जाएगा कि अब कभी भी नहीं मिलेगा.