Thursday, 9 April 2015

12 नवंबर,2015 की रात को मेरी अंतिम मुलाक़ात ऋचा दीदी से



आशीष बागरोडिया
12 नवंबर की रात की घटना मेरे दिमाग में बार बार कौंधती है. मैं उस रात ऋचा से मिलने अस्पताल गया था. उस समय वह आई.सी.यू. में थी. आई.सी.यू. में घुसते ही मैंने पाया कि ऋचा आँखें बंद किए लेटी थी और उसके होंठ सूखे थे. होंठ इतने ज्यादा सूखे लग रहे थे कि मेरी नजर होंठों पर बार बार अटक रही थी. सहसा मेरे अंतर्मन में एक आवाज आई कि ऋचा बचेगी नहीं. फिर मैंने बहुत प्यार से उससे बात की. जब भी मैं ‘ऋचा’ कहकर पुकारता था वो तुरंत आँख खोल लेती थी फिर बंद कर लेती थी. ऐसा सतत होता रहा. मेरे मुंह से अपना नाम सुनते ही वो धीरे से आँख खोलती थी. मैंने गुरुजी का ज़िक्र करते हुए बताया कि गुरुजी ने ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करने को कहा है तो फिर उसने आँख खोली और बंद कर ली. मैं ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करने लगा. उसने भी कुछ मिनट जाप किया. कुछ देर पश्चात मैं वहां से निकल गया. जाते हुए मैंने उसे आश्वस्त किया कि सब ठीक हो जएगा. मैंने यह भी विश्वास दिलाया कि अब मैं हर रोज़ यहाँ आऊँगा. मैंने उससे कुछ सकारात्मक(पोज़िटिव) बातें करके उसका मनोबल बढाने का प्रयास भी किया. पता नहीं क्यों हर बार जब भी मेरे मुंह से उसका नाम निकलता था तो वो अपनी आँखें खोल लेती थी ! जब मैंने पूछा कि क्या वह मुझे सुन रही है तो उसने सिर हिलाकर हामी भरी. मैंने उसकी फोटो भी ली. घर पहुंचकर भी मेरे मन में उसके सूखे होंठो का ख्याल आता रहा. मैंने कई डॉक्टरों से संपर्क किया और उसकी गंभीर हालत पर चिंता जताई. उसके सूखे होंठो वाली फोटो भी डॉक्टरों को भेजी ताकि उन पर कोई नैतिक दबाव पड़े. उस दिन जब मैं लेटा हुआ था तो सहसा मेरे कानों में ऋचा की धुंधली सी आवाज सुनाई पड़ी. मानों वो कह रही हो- “भैया मैं जा रही हूँ.” मुझे एक बार तो यही लगा कि शायद यह सब मेरे मन का वहम है. मेरे ही मन की उपज है. लेकिन सुबह जब उसके गुजर जाने का संदेश मिला तो बिलकुल भी यकीन नहीं हुआ. कैसे सब कुछ इतना बदल सकता है? रात को मुझसे बातचीत हुई. मेरी बातें सुनी. मेरी बातों पर प्रतिक्रिया भी की. रात को पूरी तरह सचेत थी. आखिर एक रात में इतना सब कुछ कैसे परिवर्तित हो सकता है? नर्स मेरी भी कुछ ठीक से नहीं बता पा रही है. ये स्थिति कब पलटी ? मेरी मम्मी का कहना है कि हमने सुबह सात बजे भी उससे बातें की हैं. मम्मी ने दिल पर पत्थर रखकर उसे यहाँ तक कहा कि अगर तुम बहुत दुःख झेल रही हो...तुम्हे बहुत कष्ट सहना पड़ रहा है तो तुम हमारी चिंता मत करो..तुम इन सब दुखों से स्वयं को मुक्त कर लो...शरणागत हो जाओ. मम्मी की बातों से उसकी आँखों से आंसू निकल आए और और उसे शायद दुःख हुआ...शायद गला भी अवरुद्ध हो गया होगा. मम्मी को लग रहा था कि ऋचा शायद इस लिए शांति से शरीर नहीं त्याग पा रही क्योंकि उसे हम सब की चिंता है..अपने घर के प्रति गहरे मोह के कारण ऋचा इस जीवन से मुक्त नहीं हो पा रही थी और असहनीय शारीरिक पीड़ा भोग रही थी. वह घर की समस्याओं से काफी गहराई से जुड़ी थी. उसे पिताजी, भाई और अन्य की काफी चिंता रहा करती थी. हम सब जिस आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे थे उससे परेशान थी और हम सबको इन चिंताओं से मुक्त करना चाहती थी.  ढेरों सवाल मेरे ज़हन में घूमने लगे. बड़ा कठिन होता है मन को समझाना कि हमारे सबसे करीब रहने वाला इतना दूर हो जाएगा कि अब कभी भी नहीं मिलेगा. 

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